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धा॒नाव॑न्तं कर॒म्भिण॑मपू॒पव॑न्तमु॒क्थिन॑म्। इन्द्र॑ प्रा॒तर्जु॑षस्व नः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhānāvantaṁ karambhiṇam apūpavantam ukthinam | indra prātar juṣasva naḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धा॒नाऽव॑न्तम्। क॒र॒म्भिण॑म्। अ॒पू॒पऽव॑न्तम्। उ॒क्थिन॑म्। इन्द्र॑। प्रा॒तः। जु॒ष॒स्व॒। नः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:52» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब आठ ऋचावाले बावनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजा के विषय कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य के धारण करनेवाले ! आप जैसे (प्रातः) प्रातःकाल में (धानावन्तम्) बहुत भूँजे हुए यव विद्यमान जिसके उस (करम्भिणम्) बहुत पुरुषार्थ अर्थात् परिश्रम से शुद्ध किये गये दधि आदि पदार्थों से युक्त (अपूपवन्तम्) उत्तम पूवा विद्यमान जिसके उस (उक्थिनम्) बहुत कहने योग्य वेद के स्तोत्र विद्यमान जिसके उसका (प्रातः) प्रातःकाल सेवन करते हो वैसे (नः) हम लोगों का (जुषस्व) सेवन करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अर्थी जन ऐश्वर्यवाले से याचना करता है, वैसे ही राजा जन राजधर्म जानने के लिये श्रेष्ठ यथार्थवक्ता विद्वानों से याचना करे ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं यथा प्रातर्धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनं प्रातर्जुषस्व तथा नोऽस्मान् जुषस्व ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (धानावन्तम्) बह्व्यो धाना विद्यन्ते यस्य तम् (करम्भिणम्) बहवः करम्भा पुरुषार्थेन संशोधिता दध्यादयः पदार्था विद्यन्ते यस्य तम् (अपूपवन्तम्) प्रशस्ता अपूपा विद्यन्ते यस्य तम् (उक्थिनम्) बहून्युक्थानि वक्तुं योग्यानि वेदस्तोत्राणि विद्यन्ते यस्य तम् (इन्द्र) ऐश्वर्यधारक (प्रातः) प्रातःकाले (जुषस्व) सेवस्व (नः) अस्मान् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽर्थ्यैश्वर्यवन्तं याचते तथैव राजा राजधर्मबोधायाऽऽप्तान् विदुषो याचेत ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा, प्रजा व यज्ञ, अन्नसंस्कार इत्यादी गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा याचक ऐश्वर्यवानाची याचना करतो तसेच राजाने राजधर्म जाणण्यासाठी श्रेष्ठ यथार्थवक्त्या विद्वानांची याचना करावी. ॥ १ ॥